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कविता

शहरों के नाम पट्ट बदले

जयकृष्ण राय तुषार


चाल-चलन
जैसे थे वैसे
शहरों के नाम पटट् बदले
भेदभाव बाँट रही सुबहें
कोशिश हो सूर्य नया निकले।

दम घोंटू शासन है
जनता के हिस्से
विज्ञापनजीवी
अखबारों के किस्से
हैं कोयला खदानों के
सब दावे उजले।

मीरा के होठों पर
जहर भरी प्याली
है औरत के हिस्से का
आसमान खाली,
बस आँकड़े तरक्की के
कागज पर उछले।

लूटमार, हत्याएँ
घपले-घोटाले
हम केवल मतदाता
वोट गए डाले
हैं गंगाजल भरे हुए
पात्र सभी गंदले।

आँधी का मौसम है
फूलों में गंध कहाँ,
कबिरा की बानी में
अब वैसा छंद कहाँ,
शहर हुए चाँदी के
गाँव रहे तसले।


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